नीड़ का निर्माण फिर-फिर (हरिवंश राय बच्चन)

नीड़ का निर्माण फिर-फिर (हरिवंश राय बच्चन)

Nid ka Nirman Fir-Fir ( Hariwansh Rai Bachchan)



1. नीड़ का निर्माण फिर-फिर, .....मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!


व्याख्या :- प्रस्तुत अंश कवि श्री हरिवंश राय बच्चन की कविता "नीड़ का निर्माण फिर-फिर" से लिया गया है।
कवि प्रस्तुत पंक्तियो मे प्रकृती की भयानक रौद्र रुप का चित्रण किया है। वो कहते है की जैसे ही आंधी उठी वैसे ही आकाश मे अन्धेरा छा गया। धुल धूसर से बने बादलो ने पूरी धरती को घेर लिया है, दिन के समय ही रात की अनुभूति होने लगी थी। फिर रात हो गयी जो और भी काली लग रही थी। ऐसा लग रहा था मानो इस भयानक काली रात का कभी अन्त होगा ही नही, कभी सवेरा होगा ही नही। रात्रि में होने वाले उत्पात की कल्पना करके ही लोग भय से सिहर उठे , प्रकृति का कण - कण डर गया । तभी पूरब से उषा की मोहिनी मुस्कान से लोगों का भय दूर हो गया , उनके दिल खिल उठे । कवि ने यह अनुभव किया कि जिस प्रकार प्रकृति में हमेशा दिन या रात नहीं होती ठीक वैसे ही हमेशा सुख या दुख नहीं रहता है । इनके आने - जाने का क्रम तो लगा ही रहता है । अगर एक बार नीड़ उजड़ भी गया तो क्या , हमें स्नेह और प्रेम का सहारा लेकर उसका निर्माण फिर से करने में जुट जाना चाहिए ।

2. नीड़ का निर्माण फिर-फिर............गर्व से निज तान फिर-फिर!



व्याख्या :- कवि इन पंक्तियों मे आंधी के बाद जो विनाश हुआ उसका चित्रण किया है।
कवि कहते है कि रात्रि में आई आँधी इतनी भयंकर और विनाशकारी थी कि उससे बड़े आकार वाले पर्वत भी हिल उठे। अच्छे और बड़े-बड़े पेड़ टूटकर जड़ समेत उखड़कर नीचे गिर पड़े। फिर तिनकों से बने घोंसले नष्ट होने से कैसे बच सकते थे? अर्थात् घोंसले भी नष्ट हो गए। कंकड़, पत्थर और ईंट से बने सुदृढ़ महल भी डगमगा गए। इतने  विनाश के होने पर भी आशारूपी पक्षी छिपा बैठा था। यह पक्षी आकाश में ऊँचा चढ़कर गर्व से अपनी छाती खोले उड़ रहा था। यही वह पक्षी है जो आसमान की उचाईयो पर गर्व से अपना सीना ताने विषम परिस्थितियों में भी खड़ा रहता है। यही वह आशरुपी पक्षी है जो हमे यह संदेश देता है की विषम परिस्थितियों से हमे घबराना नही चाहिये, हमे फिर से जिवन सवारना चाहिये। वह आशारुपी चिडिया नए सिरे से फिर से घोंसले के निर्माण में व्यस्त होकर, स्नेह और प्रेम को निमन्त्रण देकर सृजन में लगा था।

3. नीड़ का निर्माण फिर-फिर...........सृष्टि का नव गान फिर-फिर नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!


व्याख्या :- प्रस्तुत पंक्तियो से कवि उस भयानक काली रात की आंधी के बाद का वर्णन कर रहे है।
कवि कहते है की गुस्सयाए आकाश के बिच से सूरज की किरण ऐसे छन कर आ रही है मानो वो मुस्कुरा रही हो। उस घोर भयानक डरा देने वाली गरजना की जगह अब आकाश में चिड़ियो के गाने की आवाज सुनायी दे रही है। कवि आशारुपी एक चिडियाँ को देख कर कहते है कि वह चिडियाँ जो अपने चोच मे तिनका लेकर जा रही है वो सहज ही उस घमंडी तेज आंधी को नीचा दिखा रही है जिसने रात को तांडव किया था।
कवि कहते है कि विनाश के दुख या डर से कभी भी निर्माण का सुख छुपता नही है, प्रलय के विनाश के बाद ही सृष्टि का नव निर्माण हो सकता है। फिर से नीड़ का निर्माण होगा फिर से सुख और स्नेह का बसेरा बसेगा, इसी उम्मिद से आशारुपी चिडियाँ अपना घोसला बना रही है।

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