एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो ना रोटी बेलता है ना रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ -
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।।
व्याख्या :- एक आदमी जो रोटी बोलता है अर्थात किसान जो रोटी का अस्तित्व लाने वाला है दूसरा व्यक्ति वह है जो रोटी खाता है यह दूसरा व्यक्ति राष्ट्र की आम जनता है जो रोटी का उपभोग करती है रोटी के साथ खिलवाड़ करने वाला तीसरा आदमी भी है। यह तीसरा आदमी है, जमाखोर मिलावटखोर जो रोटी को आम जनता से दूर कर रहा है। 'रोटी से खिलवाड़' से धूमिल का तात्पर्य यह है कि यह जमाखोर अपने तुच्छ लाभ के लिए भ्रष्ट नेताओं द्वारा संसद में दुर्बल कानूनों का प्रयोग करता है और अनाज की छदम कमी दिखाकर मोटी रकम वसूलता है। इससे महंगाई बढ़ती है और देश की जनता भूख से तड़पती है।
धूमिल आम आदमी के रचनाकार हैं। उनका उद्देश्य आमजन की पीड़ा को व्यक्त करना है। इसी कारण वह भ्रष्ट राजनेताओं से भरी हुई संसद से प्रश्न करते हैं। वह प्रश्न करते हैं कि जिस व्यक्ति का किसान और उपभोक्ता के मध्य कोई काम नहीं है वह आदमी इतना शक्तिशाली कैसे हो गया है? यहाँ जमाखोर, किसान को कम से कम दाम देता है और फिर जमाखोरी करके अधिक से अधिक दाम पर उसे बेचता है। देश का कानून बनाने वाली संसद ने कभी इस तीसरे आदमी को नकारा नहीं है। इसलिए संसद मिलावट और जमाखोरी के विरुद्ध कोई सीधा कानून स्वीकार नहीं करती है जो उसके मौन का प्रतीक है। जो कानून है भी उनकी दुर्बलताओ का लाभ यह तीसरा आदमी उठा रहा है।
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