गाँव (धूमिल)

                 
गाँव
गाँव कविता
   




पद :-१

मूत और गोबर की सारी गंध उठाए
हवा बैल के सूजे कंधे से टकराए
खाल उतारी हुई भेड़-सी
पसरी छाया नीम पेड़ की।
डॉय-डॉय करते डॉगर के सींगों में
आकाश फँसा है।
दरवाज़े पर बँधी बुढ़िया
ताला जैसी लटक रही है।
(कोई था जो चला गया है)
किसी बाज पंजों से छूटा ज़मीन पर
पड़ा झोपड़ा जैसे सहमा हुआ कबूतर
दीवारों पर आएँ-जाएँ
चमड़ा जलने की नीली, निर्जल छायाएँ।


व्याख्या = यहां हवा जानवरों के पेशाब और गोबर के दुर्गंध से भरी है। सूजे हुए कंधे वाला बैल खड़ा है। दुर्गंध भरी हवा उसी से टकरा रही है। नीम के पेड़ की छाया इस प्रकार फैली है जैसे खाल उतारने के बाद भेड़ की रह जाती है। जानवर भूख सेेेे डाय-डाय करते हुए चिल्ला रहे हैं। लगता है गांव का आकाश उन्हीं पशुओं के सिंगो में फंसा है।
           एक बुढ़िया अपने द्वार पर इस प्रकार बैठी है जैसे किसी ने उसे बांध दिया है। वह दरवाजे से उठकर कहीं नहीं जाती बुढ़िया को देख कर ऐसा लगता है जैसे दरवाजे पर ताला लटका रहा हो। बुढ़िया का एक संबंधी पति या पुत्र था वह मर गया। अकेली बुढ़िया का सूने घर में मन नहीं लगता इसलिए द्वार पर बैठी है। गांव में एक ओर धरती पर झोपड़ा पड़ा है। वह ऐसा लग रहा है की बाज के पंजों से छूटा हुआ कबूतर हो। चमड़ा जलने के कारण सुखी और नीले रंग की छाया है दीवारों पर आ जा रही है।

                            पद :- २

चीखों के दायरे समेटे
ये अकाल के चिह्न अकेले
मनहूसी के साथ खड़े हैं
खेतों में चाकू के ढेले।
अब क्या हो, जैसी लाचारी
अंदर ही अंदर घुन कर दे वह बीमारी।
इस उदास गुमशुदा जगह में
जो सफ़ेद है, मृत्युग्रस्त है
जो छाया है, सिर्फ़ रात है
जीवित है वह - जो बूढ़ा है या अधेड़ है
और हरा है - हरा यहाँ पर सिर्फ़ पेड़ है
चेहरा-चेहरा डर लगता है
घर बाहर अवसाद है
लगता है यह गाँव नरक का
भोजपुरी अनुवाद है।


व्याख्या = गांव के सब खेत सूखे पड़े हैं। उनमें फसलों की जगह मिट्टी के ढेले खड़े हुए हैं। जो देखने में ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होते हैं जैसे चाकू चुभ रहा हो। गांव के लोगो के सामने ऐसी विवशता है कि सब एक ही बात सोच रहे हैं- अब क्या होगा? अकाल के कारण लोगों को निराशा और चिंता की ऐसी बीमारी लगी है कि उसने घुन के समान सबको भीतर ही भीतर खोखला कर दिया है। यह उदास गांव सर्वथा खोया हुआ है। इसे कोई नहीं जानता। यहां जो भी लोग हैं। सब कमजोरी के कारण सफेद पड़ गए हैं। लगता है सब को मौत ने जकड़ लिया है यहां छाया के समान केवल रात ही दिखाई देती है यहां जो भी लोग जीवित हैं बूढ़े अथवा अधेड़ जान पड़ते हैं। भूख और रोग ने यहां के सब लोगों को वृद्ध अथवा अधेड़ बना दिया है। यहां केवल पेड़ हरा-भरा है। मनुष्य कभी प्रसन्न दिखाई नहीं देता। यहां के प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे से भय की भावना प्रकट हो रही है और प्रत्येक घर में दु:ख भरा है इस गांव को देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने भोजपुरी भाषा में नरक शब्द का अनुवाद कर दिया हो। तात्पर्य यह है कि जिस गांव का वर्णन किया है वह नरक के समान यातना पूर्ण है यहां के लोग दुःखमय जीवन बिता रहे हैं।

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