बहुत दिनों के बाद (नागार्जुन) :- हिन्दी सारांश
Bhut Dino Ke Bad ( Nagarjun):- Hindisaransh
पद - १
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी – भर देखी
पकी – सुनहली फसलों की मुस्कान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी – भर सुन पाया
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
व्याख्या :- इस काव्य पंक्तियों में नागार्जुन ने बहुत दिन बाद देहाती जीवन का आनंद लेना स्वीकार किया है। जन कवि नागार्जुन स्वीकार करते हैं कि अबकी बार मैंने बहुत दिनों के बाद पकी हुई और सुनहरे रंग की फसलों को मुस्कुराता हुआ देखा है। यह बहुत दिनों के बाद हुआ है। बहुत दिन बीत जाने के बाद अबकी बार मैंने अपने मन की तृप्ति होने तक धान को कुटती हुई किशोरियों के उस गाने की तान को सुना है जो कोयल के गले से निकलने वाली आवाज के समान मादक था। इस तरह की घटना बहुत दिनों के बाद हुई है।
पद - 2
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी – भर सूँघे
मौलसिरी के ढे र- ढेर से ताजे – टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी – भर छू पाया
अपनी गंवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
बहुत दिनों के बाद
व्याख्या :- इस काव्य पंक्ति में नागार्जुन ने बहुत दिनों के बाद शहर से गांव आने की प्रसन्नता का वर्णन किया है। जनकवि नागार्जुन नगर से गांव देहात में आने की प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अबकी बार मैंने बहुत दिनों के बाद मौल सिरे की ऐसे ढेर के ढेर फूलों को मन की तृप्ति होने तक सुंंघा जो ताजा थे और मुरझाए नहीं थे ऐसा बहुत दिनों के बाद हुआ था। अबकी बार बहुत दिनों के बाद अपने गांव की पगडंडी कि उस धूल को छू सकता हूं जिसका रंग चंदन के समान है इस प्रकार के सुखद अनुभूति मुझे बहुत दिनों के बाद हुई।
पद -3
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी – भर तालमखाना खाया
गन्ने चूसे जी – भर
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी – भर भोगे
गंध – रूप – रस – शब्द – स्पर्श
सब साथ साथ इस भू पर
बहुत दिनों के बाद ।
व्याख्या :- प्रस्तुत पंक्ति कवि नागार्जुन द्वार रचित कविता "बहुत दिनो के बाद" से ली गयी है। इन काव्य पंक्तियों में नागार्जुन ने बहुत दिन बाद देहाती जीवन का आनंद लिया है। कवि प्रसन्नता के साथ बताते है कि जब वो अपने गाव गए तब उन्होने बहुत दिनो के बाद मन भर के तालमखाना खाया, जी भर के गन्ना खाए। काफी दिनो के बाद वो गाव की मिट्टी,वहाँ के फूलों की सुगंध और उसका रस का पान किया और उनको स्पर्श कर धन्य हुये। इतना सब कुछ उन्होने बहुत दिनो के बाद महसूस किया है।
इस कविता मे कवि खुद को प्रकृती की गोद मे महसूस करते है। उन्होने इस कविता के मध्यम से ये बताने का प्रयास किया है कि जहा लोग शहर में चकाचौंध भरी और बनावटी दुनिया मे खुद को खो देते है। वही गावँ के लोग प्रकृती से जुडे रहते है। सच्चा सुख और आनन्द हमे प्रकृती की गोद मे ही मिलता है।
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